स्वामी अवधेशानन्द जी के जीवन सूत्र
स्वामी अवधेशानन्द बताते है. की किन कारणों की वजह से लोग अशांत तथा असंतुलित रहते है| स्वामी जी के अनुसार जीवन मे दो सबसे महत्वपूर्ण चीज़े होती है. जिनकी वजह सेलों अशांत तथा असंतुलित दिखाई देते हैं गुरु जी कहते हैं कि जैसे कि आनंद जीवन का सबसे मूल्य स्वभाव है यदि आप शाश्वत आह्लाद की खोज कर रहे हों तो यह समझना आवश्यक है कि वह हमें बाह्य जगत से प्राप्त नहीं होगा। शास्त्रों में परमात्मा को सत माना गया है और वही चित को , चित व आनंद स्वरूप माना गया है। परमात्मा का अंश स्वरूप होने के कारण जीवात्मा में भी वही दिव्य भगवदीय सामर्थ्य विद्यमान है।
आगे स्वामी अवधेशानन्द गुरु कहते है कि, स्थायी आनंद इंद्रियों से परे होती है है। और बाह्य जगत के वस्तु पदार्थ अस्थिर और अतृप्ति का कारक बनती हैं, इसलिए उनसे स्थायी सुख की अपेक्षा करना व्यर्थ है। हमें यह समझना होगा कि प्रसन्नता पदार्थ सापेक्ष नहीं, अपितु चिंतन एवं विचार सापेक्ष है। हम अज्ञान के कारण भौतिकीय उत्कर्ष को ही सुख और समृद्धि का मानक समझते हैं।
अब प्रश्न उठता कि यदि जीव आनंद स्वरूप है तो उसके आसपास दुखों का संसार क्यों दिखाई देता है यह संसार प्रतिपल परिवर्तनशील है। जैसे कि हम सब जानते है कि दिन है तो का रात होना है और रात फिर बदलकर सुबह दिन बन जाना, सुबह को दोपहर में बदलना और दोपहर ढलते हुए शाम बन जाना, श्रीमद्भगवद्गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा‘ अर्थात इस देह की भी तीन अवस्थाएं हैं-बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था। इसका आशय यह है कि शरीर में भी नित्य परिवर्तन हो रहा है। हमारा मन और बुद्धि भी कहां स्थिर हैं। मन कभी प्रसन्न रहता है और कभी खिन्न।
उसी प्रकार मनुष्य के जीवन मे आने वाली कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए हम सब जानते है अगर हम असंतुलित है अशांत है तो यह पल कुछ ही समय के लिए हमारे दिमाग मे स्थित है. हमे ईन सब चीजों से ना असंतुलित नहीं होना चाहिए